श्री सुपार्श्वमती माताजी का जीवन परिचय

सरस्वती की साक्षात् प्रतिमूर्ति माँ सुपार्श्वमती माताजी को ईश्वर ने देवी के रूप में प्रकट किया जो कि सारे जगत् की माँ बनकर इस दुनियाँ में आई। सिद्धान्त वारिधि आर्यिका रत्न श्री सुपार्श्वमती माताजी कहाँ से कहाँ पहुँच गई। मारवाड़ प्रान्त के छोटे से गाँव मैनसर में जन्म एवं आर्यिका माताजी बनकर आसाम, गोहाटी, डीमापुर आदि तथा श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र वहाँ से पूरा राजस्थान, वागड़ प्रान्त तो बुन्देलखण्ड़, श्री गिरनार जी सिद्धक्षेत्र आदि-आदि सारे प्रान्तों में महती धर्मप्रभावना की। स्वपर कल्याण में निरन्तर लगी रहने वाली एवं सम्यग्दर्शन के आठ अंगों में महत्वपूर्ण अंग वात्सल्य, का भण्ड़ार पूज्या माताजी। आपका स्वास्थ्य निरन्तर अस्वस्थ रहने पर भी इनकी चर्या में तनिक मात्र भी परिवर्तन नहीं आना, प्रमाद का तो उनके जीवन मे प्रवेश ही नहीं हो पाया, चारित्र पालन, पठन-पाठन में सदा लीन रहना अनवरत रूप से लेखनी का चलना शुभोपयोग का द्योतक हैं। चारों अनुयोगों के साथ गहन अनुभव जो की आपके मुख से सुनकर बहुत आनन्द की प्राप्ति होती थी। पू. इन्दुमती माताजी की प्रेरणा एवं आशीवार्द से इन्हें अध्ययन, लेखन, पठन का सुअवसर प्राप्त हुआ।